औरैया- फास्ट ट्रैक कोर्ट संख्या-2, औरैया के अपर सत्र न्यायाधीश श्री विनय प्रकाश सिंह ने बहुचर्चित राज्य बनाम योगेश सिंह (एस.टी. संख्या 255/2021) प्रकरण में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए अभियुक्त योगेश सिंह को धारा 498-ए, 304-बी, 494 भारतीय दण्ड संहिता तथा 3/4 दहेज निषेध अधिनियम के सभी आरोपों से निर्दोष पाते हुए बरी कर दिया।
अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि अभियोजन पक्ष अपने आरोपों को प्रमाणित करने में पूर्णतः असफल रहा और प्रस्तुत साक्ष्य विरोधाभासों एवं कानूनी त्रुटियों से ग्रस्त हैं। साथ ही यह तथ्य भी सिद्ध हुआ कि मृतका विधिक रूप से अभियुक्त की पत्नी नहीं थी, जिससे लगाए गए आरोप स्वतः अवैध ठहरते हैं।
इस मामले में बचाव पक्ष की ओर से पैरवी वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण कुमार त्रिपाठी, पूर्व प्रधान न्यायाधीश (परिवार न्यायालय, देवरिया) ने की। उन्होंने साक्ष्यों का गहन अध्ययन कर अभियोजन के तर्कों का कानूनी और वैज्ञानिक आधार पर प्रभावशाली प्रतिवाद किया।
बार में यह सामान्य धारणा थी कि यह मामला अभियुक्त के लिए अत्यंत प्रतिकूल है और दोषसिद्धि लगभग निश्चित है, परंतु अधिवक्ता त्रिपाठी की सूझबूझ और विधिक रणनीति ने इस धारणा को पूरी तरह बदल दिया। उन्होंने धारा 314 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत प्रस्तुत अपनी लिखित दलीलों में पुलिस विवेचना की खामियों, चिकित्सा एवं मौखिक साक्ष्यों के विरोधाभासों, और अभियोजन की विधिक चूकों को उजागर किया।
न्यायालय ने उनके तर्कों को स्वीकार करते हुए कहा कि “अभियोजन संदेह से परे कोई ठोस साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सका, अतः अभियुक्त को संदेह का लाभ दिया जाना न्यायोचित है।”
करीब पाँच वर्षों तक झूठे आरोपों में कारावास झेलने के बाद योगेश सिंह की यह रिहाई न्यायिक व्यवस्था में न्याय, परिश्रम और विधिक निष्ठा की मिसाल मानी जा रही है।
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